‘अहंकार’ शब्द की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करना ही इस पोस्ट की प्राथमिकता रहेगी। फिर भी इस बात का ध्यान रखा जायेगा कि यह अपने मुख्य विषय, अर्थात अहंकार का पर्यायवाची शब्द [ ahankar ka paryayvachi shabd ] से भटके नहीं।
इस शब्द की चर्चा करते समय हम इससे तथा इसके समानार्थी शब्दों से वाक्य बनायेंगें, कुछ प्रश्नोत्तर भी होंगें तथा ‘अहंकार’ शब्द से जुड़ी एक कहानी का उल्लेख भी करेंगे।
अहंकार शब्द के बारे में
अपने आप को महत्वपूर्ण समझना तथा अपने अतिरिक्त किसी को कुछ न समझना ही अहंकार कहलाता है। एक अहंकारी व्यक्ति के लिए सहयोगियों की भावना , दूसरों की सलाह तथा औरों का सम्मान कुछ भी मायने नहीं रखता।
अहंकारी व्यक्ति
- दूसरों के सामने अपने बुद्धि, बल या रूप की डींगे हांकते हैं।
- दूसरों का उपहास करते हैं।
- शक्तिवान होने पर औरों पर अत्याचार कर सकते हैं।
- आत्म-मुग्ध रहते हैं।
Sl_No | अहंकार का पर्यायवाची शब्द | Ahankar ka Paryayvachi Shabd |
1 | घमंड |
2 | अभिमान |
3 | दम्भ |
4 | ग़ुरूर |
5 | गुमान |
6 | मद |
7 | दर्प |
8 | शेखी |
9 | अकड़ |
10 | हेकड़ी |
11 | ऐंठन |
अहंकार और इसके पर्यायवाची शब्दों से वाक्य रचना करें
- घमंड – घमंड की पराकाष्ठा पतन का संकेत होती है।
- दम्भ – रावण का दम्भ ही उसे ले डूबा।
- अभिमान – जब मिथ्या अभिमान किसी मनुष्य की जिह्वा पर चढ़ कर बोलने लगता है तो उसे अपनी आत्मा की आवाज भी सुनाई नहीं देती।
- ग़ुरूर – जब किसी का ग़ुरूर टूटता है तो सर्व प्रथम उसे पछतावे का एहसास होता है।
- गुमान – अपनी अक्ल पर कभी भी इतना गुमान नहीं करना चाहिए कि वह गलत दिशा पकड़ ले।
- मद – मद में चूर हाथी ने गौरैये की पुकार नहीं सुनी।
- दर्प – दर्प से भरे राजन ने तलवार म्यान से निकाली और नौकर का सिर धड़ से अलग कर दिया।
- शेखी – परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर भी शेखी बघारते हुए तुम्हे शर्म नहीं आती?
- अकड़ – जैसे ही अदालत ने अपराधी को क़ैद की सजा सुनाई उसकी सारी अकड़ जाती रही।
- हेकड़ी – जैसे ही मैंने उसे अस्पताल का ब्यौरा सुनाया, उसकी सारी हेकड़ी छू-मंतर हो गयी।
- ऐंठन – हारने के बावजूद उसकी डींग हांकने की आदत नहीं गई, इसी को कहते हैं, रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई।
अहंकार शब्द के अंग्रेजी शब्द
ये अंग्रेजी शब्द अहंकार शब्द के लिए प्रयुक्त होते हैं:
Vanity
Pride
Boast
Ego
Self-conceit
Narcissism
‘अहंकार’ शब्द से जुड़ी एक कथा
सात्विक सक्सेना ने पिछले पांच वर्षों में काफ़ी धन कमाया था। जब से उन्होंने कपड़े के व्यापर में हाथ डाला था तब से उनके यहाँ पैसों की बारिश हो रही थी। शहर के सबसे धनी व्यक्तियों में उनकी गणना होने लगी थी।
पर पैसे के साथ-साथ अहंकार का आगमन भी हो चुका था।
सोमवार का दिन था। हर सोमवार सेठ जी शंकर भगवान के दर्शन हेतु मंदिर जाया करते थे। उस दिन वहां से आने के बाद उनकी गाड़ी मुख्य-द्वार के पास आ कर रुकी। बहादुर को गेट खोलने में ज़रा देर हुई। फिर क्या था, सेठ जी गुस्से में तमतमाते हुए उतरे और बहादुर को जम कर फटकार लगाई।
” दिन भर सोते रहते हो। पगार किस बात की लेते हो?”
फिर माली से मुखातिब हुए, “इधर इतना झाड़-झंखाड़ कैसे उग आया है? उधर पूल के पास भी सफाई में कमी है। तुम भी मन लगा कर काम नहीं कर रहे हो।” माली एक वृद्ध व्यक्ति था। उसने सिर नीचे किये हुए ही कहा, “मालिक अभी मैं पूल के पास सफाई कर देता हूँ।”
पास ही लॉन में सात्विक जी के वृद्ध पिता भी कुर्सी पर बैठे धूप सेंक रहे थे। वे सारा माज़रा बड़े गौर से देख रहे थे।
सात्विक जी में पचास ऐब थे लेकिन वो अपने पिता जी का बहुत सम्मान करते थे। जब उन्होंने देखा कि उनके पिता बड़े गौर से उन्हें निहार रहे हैं तो उधर ही चल दिए। पास पहुँच कर एक कुर्सी खींची और पिता जी के बगल में बैठ गए।
पिता जी ने थोड़े तल्ख़ अंदाज़ में पूछा, “बहादुर की क्या गलती थी? तुम्हे पता है उसने गेट खोलने में क्यों देर की?”
“क्यों?”
क्योंकि गाड़ी गेट के अंदर आ कर जिधर की ओर मुड़ती है उधर दो-तीन कीलें पड़ी हुई थीं, उन्हें वह बिचारा उठाने लग गया था।”
थोड़ा रुक कर उन्होंने फिर कहा, “और ये माली? इन पर तो तू थोड़ा तरस खाता! ये लगभग मेरी उम्र के हैं। तू क्या भूल गया कि सात साल पहले तूने क्यों नौकरी छोड़ कर व्यापर शुरू किया था?”
यह सुनते ही सात्विक जी की स्मृति में कई घटनाएं एक साथ उभर आईं। नौकरी के दिनों में बॉस ने सब के सामने उनकी बेइज़्ज़ती की थी। एक बार पिता जी बीमार थे और उनकी देख-रेख के लिए छुट्टी मांगने पर बॉस ने उन्हें चैम्बर से बाहर निकाल दिया था। जब पानी सर से ऊपर जाने लगा तो सात्विक जी ने मन मार कर अच्छी-खासी नौकरी छोड़ने का इरादा कर लिया था।
सात्विक जी यह सब सोच ही रहे थे कि उन्हें फिर से पिता जी की आवाज सुनाई पड़ी, ” बेटा, बहादुर और माली से ऐसे बातें मत किया करो, तुम नौकरी करते वक़्त जैसा व्यव्हार पाना चाहते थे, वैसा व्यवहार तुम उन लोगों के साथ भी करो। “
सात्विक जी थोड़ी देर तक चुपचाप सुन्न से बैठे रहे। एक बार असीम श्रद्धा से पिता जी की ओर देखा जो अब अखबार पढ़ने में व्यस्त हो चुके थे। फिर वो गेट की ओर चल दिए।
थोड़ी देर बाद सात्विक जी बहादुर और माली के साथ हंस-हंस कर बातें कर रहे थे।
अनुभवी पिता ने अखबार के पीछे से देखा और अहंकार का उन्मूलन होते देख चैन की सांस ली।
FAQs
अहंकार का मतलब क्या होता है?
जब कोई अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है तथा इस कारण औरो से बुरा बर्ताव भी करने लगता है तो उसके अंदर निहित भाव को अहंकार कहते हैं।
अहंकार का दूसरा अर्थ क्या है?
घमंड के अतिरिक्त अहंकार का दूसरा अर्थ आत्म-मुग्धता में डूबे रहना है। ऐसे व्यक्ति अपनी क्षमता को वास्तविक स्तर से बहुत ऊपर आंकते हैं तथा उनके मन में निहित होता है कि उनसे बुद्धिमान या बलवान कोई हो ही नहीं सकता।
अहंकार और अभिमान में क्या अंतर है?
अहंकार एक बुरी भावना का नाम है जो अपने आप को बहुत बुद्धिमान, रूपवान या बलवान समझने से उत्पन्न होती है। यह कई अन्य बुराइयों को जन्म देती है जिनमे उपहास, अत्याचार, अनादर इत्यादि प्रमुख हैं।
दूसरी ओर, जिस सम्मान के कारण स्वयं के सम्मान में वृद्धि का एहसास हो उसे अभिमान या गर्व कहते हैं। जैसे हमें देश पर अभिमान या गर्व है। परन्तु ‘अभिमान’ शब्द को ‘अहंकार’ के समानार्थी शब्द के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
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अहंकार का पर्यायवाची शब्द [ Ahankar ka Paryayvachi Shabd ]
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