होली खुशियों का त्यौहार है। बसंत का मौसम, रंगों की बहार, तरह-तरह के सुस्वादु व्यंजन और इन सबके बीच मस्ती और उमंग का माहौल। ये सबकुछ मिला कर एक अद्भुत त्यौहार है होली।
इस दिन सबके चेहरे खिले होते हैं, अल्हड़पन और होली के गीत एक अजब समां बांधते हैं। अबीर, गुलाल और रंगों की फुहार तो आसमान तक नज़र आती है। लोग-बाग़ मस्ती में फाग गाते भी दिखते हैं।
व्यंजनों का त्यौहार
इस दिन लोग गुझिया, मालपुए तथा अन्य मिठाइयाँ बनाते, खाते और खिलाते हैं। विभिन्न तरह के व्यंजनों की मिठास और सोंधी सुगंध घर-घर फ़ैल जाती है। मिठाइयों के साथ-साथ नमकीन और भुजिया-खुरमे भी लोग बड़े चाव के साथ खाते हैं। ठंडाई और शर्बतों का मिज़ाज़ अलग ही होता है।
रिश्तों का पर्व
होली भाईचारे तथा दोस्ती का भी पावन त्यौहार है। ऐसा कहा जाता है कि होली के दिन दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। टूटे रिश्ते फिर से जुड़ जाते हैं।
भेद-भावों से मुक्त यह त्यौहार शरीर के साथ-साथ ह्रदय को भी पवित्रता में सराबोर कर देने वाली भावनाओं का त्यौहार है। एक दूसरे को बधाइयाँ देना, मिठाइयां बांटना, गले लगना, रंग लगाना, खुशियों के गीत गाना – इन सबके बीच शत्रुता एवं बुरी भावनाएं कैसे टिक सकती हैं?
होलिका-दहन एवं होली की पौराणिक कथाएं
प्रह्लाद की कथा
प्रह्लाद की कथा मुख्यतः होलिका दहन से जुड़ी है। असुरों के राजा हिरण्यकश्यप को पुत्र प्रह्लाद की विष्णु-भक्ति तनिक भी नहीं भाती थी। हिरण्यकश्यप ने उन्हें अनेक तरह की यातनाएं दीं। पर प्रह्लाद प्रभु के प्रति भक्ति से लेश-मात्र भी विचलित नहीं हुए।
प्रह्लाद की बुआ होलिका को एक ऐसा परिधान वरदान में प्राप्त हुआ था जिसे पहन लेने से वो आग में भी नहीं जलती। उसने वह पोशाक पहनी, प्रह्लाद को गोद में लिया और अग्नि में जा बैठी।
परन्तु नादान बालक प्रह्लाद को भगवान विष्णु के प्रति गहरी आस्था के कारण कुछ नहीं हुआ। उनकी बुआ ही जल कर रख हो गयी। तभी से फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका-दहन मनाया जाता है।
राधा-कृष्ण के प्रेम का पर्व
होली को राधा-कृष्ण के युग-युगांतर से कही और सुनी जा रही प्रेम-कथा के साक्ष्य के रूप में भी मनाया जाता है। बरसाने और नंदग्राम की ‘फूलों की होली’ तथा ‘लट्ठमार होली’ आनंद की पराकाष्ठा तक ले जाते हैं।
शिव-पार्वती विवाह
ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती की संतान के हाथों ही हो सकता था। अतः स्वर्गदेव इंद्र एवं अन्य देवताओं ने कामदेव से शिव जी की तपस्या भंग करने के लिए कहा। कामदेव ने शिव जी पर फूलों का बाण चला कर उनकी तपस्या भंग कर दिया।
शिव जी ने क्रोधित हो कर तीसरे चक्षु से कामदेव को भस्म कर दिया। देवों ने शिव जी से शांत होने एवं पार्वती जी से विवाह करने हेतु उनसे प्रार्थना की।
शिव जी ने कामदेव की पत्नी रति को कामदेव के पुनर्जीवन का वरदान दिया तथा पार्वती जी से विवाह के लिए तैयार हो गए। उस दिन देवताओं ने पर्व मनाया। तभी से उस दिन को होली के रूप में मनाया जाने लगा।
ऊपर लिखे गए तथ्त्यों में से शब्द चुन कर एक क्विज बनाई गयी है। यह होली से जुड़े शब्दों के ज्ञान पर आधारित एक क्विज है। इसे हल कर अपने शब्द-ज्ञान का विस्तार करें।
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