कली का पर्यायवाची शब्द | Kali ka Paryayvachi Shabd जानने से पहले ‘कली’ शब्द की परिभाषा पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
‘कली’ शब्द की परिभाषा: फूल की उस अविकसित या सुसुप्त अवस्था को ‘कली’ कहा जाता है जिसके बाद वह पूर्ण रूप से प्रस्फुटित हो कर तरुणावस्था को प्राप्त करता है.
साधारण शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि पूरी तरह खिलने से पहले फूल एक सोयी हुई संकुचित अवस्था में रहता है. इस अवस्था को ‘कली’ नाम दिया गया है.
साहित्य में प्यारी, गुड़िया सी बच्ची के लिए भी ‘कली’ शब्द का उपयोग किया गया है.
महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने ‘कली’ शब्द का उपयोग अपनी कविता ‘जूही की कली’ में एक कोमलांगी तरुणी के रूप में किया है जो निर्जन वन में अपने प्रियतम पवन की राह देख रही है.
विजन-वन-वल्लरी पर
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
सोती थी सुहाग-भरी-स्नेह-स्वप्न-मग्न-
अमल-कोमल-तनु तरुणी-जूही की कली,
दृग बंद किये, शिथिल -पत्रांक में,
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‘कली’ शब्द के 10 पर्यायवाची शब्द
1 | कलिका |
2 | मुकुल |
3 | कोंपल |
4 | गुंचा |
5 | ढोंढ़ |
6 | कोरक |
7 | मुकुर |
8 | शिगूफ़ा |
9 | जालक |
10 | मंजरी |
FAQs
कली का पर्यायवाची शब्द क्या है?
कली के कुछ पर्यायवाची शब्द इस प्रकार हैं:
कलिका
मुकुल
कोंपल
मंजरी
ढोंढ़
कली माने क्या होता है?
पुष्प की अविकसित अवस्था को कली कहते हैं। कली इस अवस्था के बाद पूर्ण रूप से खिल कर फूल बन जाती है।
कली का बहुवचन क्या है?
‘कली’ शब्द का बहुवचन ‘कलियाँ’ होता है।
कली के अंग्रेजी शब्द | English Words for ‘Kali’
Bud
Flowerlet
Floret
‘कली’ और ‘फूल’ शब्द आने वाले मुहावरे तथा उनके अर्थ
कली से फूल बनना – जवान होना
जी की कली खिलना – खुश होना
फूल बरसाना – सम्मान और प्यार देना
गूलर का फूल होना – दुर्लभ होना/ दिखाई नहीं देना
राह में फूल बिछाना – प्यार दिखाना/ स्वागत करना
‘कली’ शब्द से सम्बंधित एक कहानी

एक भौंरा रोज़ उड़ते हुए आता और एक गुलाब के पौधे पर बैठ जाता। वहां गुलाब की एक कली थी। भौंरा रोज़ उससे बातें करता।
एक दिन कली ने भौंरे से पूछा, ” मित्र, ऐसा समय भी आएगा जब मैं नहीं रहूंगी। तब तुम किससे बातें करोगे? “
भौंरे ने कहा, ” तुम कली से फूल ही तो बनोगी, तो फूल से बातें करूँगा। “
“पर फूल भी तो हमेशा नहीं रहेगा? “
भौंरा सोच में पड़ गया और वहां से उड़ते हुए चला गया।
सचमुच कली फूल बनी और फिर फूल भी धीरे-धीरे सूख कर बिखर गया। भौंरे ने भी निराश हो कर उधर की ओर आना छोड़ दिया।
पर उससे रहा नहीं गया। कुछ दिनों बाद वह फिर उड़ते हुए आया। उसने देखा कि फूलों से कुछ बीज गिरे थे जो धीरे-धीरे अंकुरित हो उठे थे।
भौंरे को आशा दिखी। वह फिर उधर की ओर आने लगा। शनैः-शनैः पौधा बड़ा हुआ, पत्ते निकले और फिर से उस पर कलियाँ आ गयीं।
भौंरा एक कली के पास जा कर बैठा और बातें करने लगा।
कली ने कहा, “मेरा जीवन तो बस कुछ दिनों का है। फिर किससे बातें करोगे?”
इस बार भौंरे ने आत्म-विश्वास से कहा, ” कोई भी और कुछ भी स्थायी नहीं है। तो चिंता कैसी? मृत्यु तो आएगी पर जीवन तो बार-बार जन्म लेता ही रहेगा। “
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