अर्जुन पांच पांडवों में से एक थे. वे महान धनुर्धर व गुरु द्रोण के परम प्रिय शिष्य थे. महाभारत के युद्ध में उन्होंने अहम भूमिका निभा कर कौरवों को घुटने टेकने पर बाध्य कर दिया था.
अर्जुन का पर्यायवाची शब्द [या अर्जुन का समानार्थी शब्द ] ढूंढने के लिए हमे अपने सामान्य ज्ञान का सहारा लेना पड़ेगा. एक शब्द की उत्पत्ति के पीछे के कारण जानने से पर्यायवाची शब्दों (samanarthi shabd) को याद रखने में मदद मिलती है. निम्नलिखित उदाहरणों को देखिये. पहले कारण दिए गए हैं, फिर उनसे बने अर्जुन के पर्यायवाची शब्द [ arjun ka paryayvachi shabd ] लिखे गए हैं.
अर्जुन की धनुष का नाम ‘गांडीव’ था – गांडीवधर
अर्जुन कुंती के पुत्र थे – कुन्तीसुत, कौन्तेय
अर्जुन पाण्डु के पुत्र थे – पांडुनंदन
उनके रथ की पताका पर हनुमान जी का चित्र था – कपिध्वज
अर्जुन राजसूय यज्ञ से पहले उत्तर के राज्यों को पराजित कर बहुत सारा धन, स्वर्ण इत्यादि लाये थे. / धन को अर्जित करने वाला – धनञ्जय
कुंती का एक दूसरा नाम पृथा भी था. इसलिए संभवतः उनके पुत्र को कृष्ण पार्थ कह कर सम्बोधित करते थे. इसके अतिरिक्त ‘पार्थ’ का अर्थ शिष्य भी होता है. कृष्ण ने उन्हें ज्ञान-दान दिया था और ऐसा करते समय उन्होंने अर्जुन को बार-बार ‘हे पार्थ’ कह कर सम्बोधित किया है. – पार्थ
अर्जुन दोनों हाथों से तीर चलाने में निपुण थे / जो दोनों हाथों से एक समान कार्य करने में निपुण हो – सव्यसाची
अर्जुन के रथ के अश्व सफ़ेद रंग के थे – श्वेतवाहन
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अर्जुन का पर्यायवाची शब्द [ Arjun ka Paryayvachi Shabd ]
- पार्थ
- कौन्तेय
- धनञ्जय
- पांडुनंदन
- गाण्डीवधर
- कपिध्वज
- कुन्तीसुत
- सव्यसाची
- वृहन्नला
- गुडाकेश
- जिष्णु
- श्वेतवाहन
FAQs on Arjun ka Paryayvachi Shabd
कौन्तेय का अर्थ क्या है?
पांच पांडवों में से एक, महान धनुर्धर तथा गुरु द्रोण के सबसे परम शिष्य अर्जुन के कई नामों में से एक ‘कौन्तेय’ भी है. उन्हें कौन्तेय कहा जाता है क्योंकि वे कुंती के पुत्र थे. इसी कारण अर्जुन को ‘कुन्तीसुत’ नाम से भी जाना जाता है.
अर्जुन को कपिध्वज नाम से क्यों जाना जाता है?
‘कपि’ शब्द का अर्थ वानर होता है. अर्जुन के रथ-ध्वज पर महावीर हनुमान का चित्र अंकित था और वे स्वयं उस पर विराजमान भी रहते थे. इस कारण अर्जुन को कपिध्वज नाम से भी जाना जाता है.
अर्जुन को बृहन्नला क्यों कहा जाता है?
पांडवों के अज्ञातवास के समय अर्जुन को अपनी पहचान छिपाने के लिए किन्नर का वेश धारण करना पड़ा। किन्नर के रूप में अर्जुन ही बृहन्नला कहलाये।
वनवास की अवधि में पांडवों को अपनी क्षीण होती हुई शक्ति तथा साम्राज्य को पुनः अर्जित करना था. इस कारण उन्होंने महर्षि वेद व्यास से विचार-विमर्श किया। तब महर्षि ने अर्जुन को दिव्यास्त्रों के प्रयोग के साथ-साथ विभिन्न कलाओं का भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए कहा.
महर्षि के कहे अनुसार अर्जुन इंद्रलोक जा कर चित्रसेन से कलाओं का प्रशिक्षण लेने लगे। एक बार जब अर्जुन नृत्य एवं संगीत की शिक्षा ले कर उसका प्रदर्शन कर रहे थे तभी स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी उन्हें देख कर उन पर मोहित हो गयी। उसने पार्थ के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा।
पर अर्जुन ने उर्वशी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने यह कारण बताया कि उनके पूर्वज राजा पुरुरवा ने उनसे विवाह किया था। अतएव वो उनकी माता के सामान हैं।
क्रोधित उर्वशी ने उन्हें एक वर्ष तक नपुंसक रहने का श्राप दे दिया। इस कारण अर्जुन को अज्ञातवास काल में राजा विराट के महल में किन्नर बन कर रहना पड़ा। किन्नर रूप में अर्जुन ही बृहन्नला कहलाये।
वे उस समय विराट राजा की पुत्री उत्तरा को संगीत और नृत्य भी सिखाते थे।
धनुर्धर शब्द का संधि-विच्छेद कीजिये।
धनुर्धर = धनुः+धर
‘अर्जुन’ शब्द का अर्थ क्या है?
अर्जुन शब्द का अर्थ है सफ़ेद, उज्जवल या साफ और स्वच्छ। महाभारत में पांच पांडवों में से एक अर्जुन थे। अर्जुन गुरु द्रोण के परम प्रिय शिष्य थे। अर्जुन और कर्ण से बड़ा धनुर्धर उस काल में कोई न था।
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