यह पोस्ट उन छात्रों के लिए हैं जो हिंदी पेपर में अच्छे अंक प्राप्त करना चाहते हैं। विलोम तथा पर्यायवाची शब्दों के बारे में अच्छी जानकारी होने से आप दो तरह से लाभान्वित होते हैं। एक तो आप उन प्रश्नों के उत्तर जिनमे ऐसे शब्द पूछे जाते हैं, आसानी से दे सकते हैं। दूसरे लेख, सारांश, सप्रसंग व्याख्या इत्यादि लिखने के लिए आप के शब्द-भंडार में कोई कमी नहीं होगी।
‘सेवक’ शब्द का अर्थ
सेवक शब्द का अर्थ है सेवा करने वाला। सेवा का अर्थ है किसी के हित में काम करना। जैसे: अधीर ने जीवन पर्यन्त अपने मालिक की सेवा की। इस वाक्य से मालूम पड़ता है कि अधीर अपने मालिक की भलाई हेतु कई कार्य करता रहा। या वह कई ऐसे काम करता रहा जिससे उसके मालिक का जीवन सुगम बना। यहाँ अधीर ‘सेवक’ है क्योंकि उसने अपने मालिक को अपनी सेवाएं प्रदान की।
सेवक का विलोम शब्द [ Sevak ka Vilom Shabd ]
क्रम संख्या | Sl. No. | शब्द | Shabd | विलोम शब्द | Vilom Shabd |
---|---|---|
1 | सेवक | स्वामी ✅ |
2 | मालिक | |
3 | सेव्य | |
4 | नाथ | |
5 | अधिपति | |
6 | अन्नदाता |
‘सेवक’ शब्द से सम्बंधित प्रश्न (उत्तर सहित)
कोष्ठक में दिए गए शब्दों का सही रूप लिखें :
- लगता है (सेवकों) नाराज है, इसलिए काम पर नहीं आया।
- उनके अपने कार्यों के लिए (सेवक) का एक पूरा दल था।
- दल की सभी (सेविका) समाज के लिए अच्छे-अच्छे कार्य कर चुकीं थी।
- (सेविका) को उनके अच्छे कार्यों के लिए पुरस्कृत किया गया।
- पार्टी के सारे (सेवकों) बहुत खुश थे।
उत्तर
- सेवक
- सेवकों
- सेविकाएँ
- सेविकाओं
- सेवक
FAQs
सेवक का वाक्य क्या होगा?
दो उदाहरण:
सेवक ने अपने स्वामी की ज़िंदगी बचाने के लिए अपनी ज़िंदगी दांव पर लगा दी।
एक सेवक के मैने कई रूप देखे थे पर स्वामीभक्ति की यह पराकाष्ठा कभी नहीं देखी थी।
सेवक का पर्यायवाची शब्द क्या है?
नौकर
भृत्य
सहायक
दास
परिचर
टहलुआ
ख़िदमतगार
नौकर का स्त्री शब्द क्या है?
नौकर का स्त्रीलिंग ‘नौकरानी’ है।
सेवक शब्द पर एक कहानी
झिनकू चला गया
झिनकू इनामदार साहब का बहुत पुराना सेवक था। वह बचपन से ही उनके यहाँ काम करता था। अब तो वह लगभग पच्चीस साल का हो चला था। वह बड़ी मेहनत से तथा खूब मन लगाकर सारा काम करता था।
इनामदार साहब ने उससे कई बार कहा की वह कुछ पढ़ाई करे। उन्होंने उसका नाम स्कूल में लिखा दिया। पर झिनकू का मन पढ़ने में बिलकुल नहीं लगता। वह छुट्टी से पहले ही घर दौड़ा चला आता। फिर कई दिनों तक जाता ही नहीं। जब स्कूल में उसका नाम लिखाया गया था तब वह 12 साल का था। तब से 12-13 साल बीत गए पर पढ़ाई का सिलसिला कुछ बैठ नहीं पाया।
दिन बीतते गए। इनामदार साहब, उनके बेटे-बेटी तथा उनकी पत्नी भी कई कामों के लिए झिनकू पर निर्भर रहते थे। फोटोकॉपी कराने एवं बच्चों के स्कूल प्रोजेक्ट्स में मदद करने से ले कर खाना बनाने, परोसने तथा बर्तन धोने के सभी काम सेवक झिनकू करता था।
इनामदार साहब ने बच्चों तथा पत्नी को सख्त हिदायत दे रखी थी कि कोई उसे नौकर ना समझे ना इस तरह का कोई शब्द कह कर उसे सम्बोधित करे।
पर एक दिन कुछ हो गया जिससे झिनकू का मन दुख गया। झिनकू ने देखा कि छोटी ने अपनी कॉपी में एक चित्र की कटिंग गलत जगह पर चिपका दी है। वह छोटी को बार-बार बताना चाह रहा था। पर छोटी ने सुना ही नहीं।
जब रात को छोटी सो गयी तो झिनकू ने उसकी नोटबुक निकाली और चित्र को सही जगह चिपका दिया। यहाँ तक सब कुछ सही था मगर झिनकू ने गलती यह की कि नाश्ते के समय यह बात छोटी को बता दी। छोटी ने रोना शुरू कर दिया।
अब मिसेज इनामदार गुस्सा हो गयीं। उनके मुँह से निकला, ” क्यों किया तुमने ऐसा? तुम्हे पढ़ाई-लिखाई के बारे में क्या मालूम है ?” मैडम का गुस्सा यहीं शांत नहीं हुआ। उन्होंने यह देख और समझ तो लिया कि झिनकू ने जो किया वो गलत नहीं था, सही था पर वो अपने आप को चिल्लाने से नहीं रोक पाईं।
” जिस चीज़ की जानकारी न हो उसमे टांग नहीं अड़ानी चाहिए। तुम्हारी औकात जहाँ तक है वहीँ तक कोशिश किया करो!”
झिनकू एकदम से जड़ हो गया। बच्चे स्कूल चले गए, झिनकू बिना एक शब्द बोले घर के काम करता रहा। पर झाड़ू लगाते वक़्त, चावल धोते वक़्त, फर्श पोंछते वक़्त एक शब्द उसके कानों में गूंजता रहा – औकात… औकात … औकात …
बाहर गाड़ी के रुकने की आवाज आयी। शायद बच्चे आ गए थे। झिनकू ने सबके लिए खाना परोसा, मैडम के लिए भी। वह पूरी तरह खामोश था। मैडम को उसकी ख़ामोशी साफ़ दिख भी रही थी। पर वो कुछ बोलीं नहीं।
उस शाम झिनकू चला गया।
उसने अपनी टूटी-फूटी लिखावट में एक चिट्ठी लिखी थी जो उसके कमरे में मिली।
“हमरा कउनु शिकायत नाही बाटे। सभी लोगन से प्यारो मिला। बस बहुत दिन हो गया रहा नौकरी, एही नाते जात हईं। कउनु दूसर काम खोज लेबें।”
बच्चों और मालकिन से भी बड़ा झटका इनामदार साहब के लिए था। वे झिनकू के बिना अपनी रोज़ाना की ज़िन्दगी के बारे में सोच ही नहीं पा रहे थे। उन्हें सचमुच बहुत समय लगा अपने आप को व्यवस्थित करने में।
तीन साल बीत गए हैं इस बात को। बच्चों ने भी धीरे-धीरे खुद को बिना झिनकू वाली ज़िन्दगी में ढाल लिया है। मुश्किलें तो बहुत आईं पर ज़िन्दगी भी गति और दिशा को बदल कर अपना रास्ता निकाल ही लेती है।
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और आज माल-गोदाम पर जब अचानक ही इनामदार साहब की नज़र उस पर पड़ी तो उन्होंने ड्राइवर को गाड़ी रोकने का इशारा किया। उन्होंने उसे पहचान लिया। अपने पुराने सेवक को पहचानने में उनसे गलती कैसे हो सकती थी भला! उन्हें देख कर तो झिनकू की आँखों से आंसू निकल आये।
गिले-शिकवों का दौर काफी देर चलता रहा।
” साहब बड़ी गलती किये रहे, माफ़ कर दीजियेगा।”
” अगर एहसास था तो फिर क्यों नहीं आये? अपनी छोटी और अक्षत को भूल गए?”
उसका सिर शर्म से झुक गया। वह एक शब्द भी नहीं बोल पाया।
इनामदार साहब ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, ” देखो झिनकू, तुम्हे जहाँ अच्छा लगे वहीं रहना चाहिए। मैं समझता हूँ तुम्हारी बात को, तुम्हारे दर्द को। बिना आत्म-सम्मान के भी कोई ज़िन्दगी होती है भला? “
झिनकू की आँखें छलछला आईं। उसने कहा, ” सर, हमरा नाही पता आत्म -सम्मान का होता है, हम त अनपढ़ बेकूफ़ हईं। पता नहीं मन में का आया की अइसन घर छोड़ के चल गइलीं। पर अब मैडम आ बच्चन के मुँह नाही देखलाई सकेंगे। “
इनामदार साहब भी द्रवित हो गए। उन्होंने कहा, ” बेटा, मैं तुम्हे किसी बात के लिए मज़बूर नहीं करूँगा। हाँ एक बात ज़रूर कहूंगा, तुम्हे रुपये-पैसे की ज़रुरत हो या अगर कभी पढ़ना चाहो तो मैं तुम्हारी हर मदद करूँगा। बिना किसी झिझक के चले आना। “
इतना कह कर इनामदार साहब तो चले गए मगर झिनकू देखता रह गया।
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