यदि आप किसी शब्द का अर्थ ही अच्छी तरह से नहीं जानते तो उसका पर्यायवाची शब्द कैसे जानेंगे या ढूंढ़ेंगें ? ‘पक्षाघात का पर्यायवाची शब्द’ विषय पर चर्चा में भी सर्वप्रथम शब्दार्थ पर ही ध्यान देना होगा।
पक्षाघात। क्या इस शब्द को आप सही तरीके से नहीं पढ़ पा रहे हैं? तो यहाँ क्लिक कर माइक के चिन्ह को दबाएं और सुनें
इस शब्द की वर्तनी जानना भी आवश्यक है।
वर्ण-विच्छेद इस प्रकार है: पक्षाघात=प् + अ + क् + ष् + आ + घ् + आ + त् + अ
सामान्य वर्तनी इस तरह समझ सकते हैं: प+क्ष+आ +घ+आ+त
यहाँ आप प्रश्न कर सकते हैं कि पर्यायवाची जानने के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता है पर यकीन मानिये किसी शब्द की पूरी जानकारी लेने पर आप की स्मरण शक्ति उस शब्द को अपने पास संचित रखने में अधिक समर्थ होती है।
पक्षाघात का अर्थ / Pakshaghat Meaning in Hindi
पक्षाघात दो शब्दों से बना है। ‘पक्ष’ और ‘आघात’ । इसका संधि विच्छेद है: पक्षाघात=पक्ष+आघात
‘पक्ष’ का अर्थ है ‘एक तरफ का हिस्सा’ या ‘एक ओर का भाग’ .
जैसे: ‘वकील ने मुवक्किल का पक्ष रखते समय एक चालाकी की।’
इसका अर्थ हुआ कि वकील ने चतुराई के साथ मुवक्किल की ओर से तथ्य और तर्क पेश किये।
‘आघात’ का अर्थ चोट या दर्द होता है।
जैसे: ‘अपने साथी द्वारा दिए आघात को चंद्रा साहब कभी भूल नहीं पाए।’
अर्थात चंद्रा साहब के साथी ने उन्हें जो दर्द या पीड़ा पहुंचाई थी उसे वो कभी नहीं भुला पाए।
अब मूल शब्द ‘पक्षाघात’ को समझने की कोशिश करते हैं। ‘पक्ष’ और ‘आघात’ के उपरोक्त अर्थों से मालूम होता है कि मूल शब्द का अर्थ होता है ‘ शरीर के एक भाग या हिस्से को कोई ऐसी चोट पहुंचना जिससे वह बेकार हो जाए।
‘ पक्षाघात’ को हम ‘लकवा’ के नाम से भी जानते हैं। इसमें किसी चोट या दिल का दौरा इत्यादि के कारण शरीर का बाँया या दाँया भाग या गले के नीचे का समस्त शरीर बेकार हो जाता है तथ हिलने-डुलने की भी स्थिति में नहीं रहता।
Pakshaghat ka Paryayvachi Shabd [ पक्षाघात का पर्यायवाची शब्द ]
पक्षाघात के पर्यायवाची शब्द [pakshaghat ka paryayvachi ] निम्नलिखित हैं :
- लकवा
- फ़ालिज
- अंगघात
- अर्धांगघात
पाठकों से निवेदन है कि यदि ‘पक्षाघात’ शब्द के किसी और पर्यायवाची शब्द की जानकारी है तो कृपया comments में शेयर करें।
पक्षाघात के पर्यायवाची शब्दों से वाक्य बनायें [ Sentence Formation with Pakshaghat Synonyms in Hindi]
लकवा – लकवा मारने के बावजूद भी वो अपने नित्य-कर्मों के लिए किसी के मोहताज़ नहीं हैं।
फ़ालिज – फ़ालिज रोग ही ऐसा ही जो इंसान को तोड़ कर रख देता है।
अंगघात – उनके पराक्रम के आगे अंगघात भी झुक गया।
अर्धांगघात – अर्धांगघात एक ऐसी बीमारी है जो स्वयं भी ठीक हो सकती है।
पक्षाघात से सम्बंधित एक मर्मस्पर्शी कहानी
पक्षाघात
जीवन बाबू जब 59 साल के थे तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। ईश्वर की असीम अनुकंपा से वह बच तो गए मगर उन्हें पक्षाघात हो गया। दाहिनी ओर के आधे शरीर ने हिलना-डुलना बंद कर दिया। बाँया हाथ और बाँया पैर थोड़ा बहुत हिलते थे मगर कुछ भी कर सकने में अब वह सक्षम नहीं रहे। बिस्तर पर पड़े-पड़े आज उन्हें साढ़े तीन महीने हो गए थे।
गुड्डन
जीवन बाबू एक कर्मठ व्यक्ति रह चुके थे। इस तरह से बिस्तर पर लेटे रहना उनके लिए मृत्यु समान ही था। मगर करते भी क्या? बिस्तर पर लेटे-लेटे एक हाथ से ही कई तरह के कागजों पर हस्ताक्षर कर उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। पेंशन भी शुरू हो गई थी। मगर इन सब के बावजूद इस तरह बिस्तर पर पड़े रहना भी क्या कोई जिंदगी थी? तमाम तरह की बातें दिमाग में घूमती रहतीं। ऑफिस की यादें, बाग़ में सैर के पल इत्यादि तो थे ही, मगर जो बात उन्हें सबसे ज्यादा अखरती वह थी पोती गुड्डन को गोद में लेकर खिला नहीं पाना। जब वो अच्छे थे तब जब भी वह बाग़ में सैर के लिए जाते उसे गोद में उठा लेते थे। गुड्डन भी दादा की गोद में खिलखिलाती रहती थी।
हाय रे जीवन !
जब बेटे- बहू ऑफिस चले जाते थे तो घर में सिर्फ जीवन बाबू, कामवाली बाई और गुड्डन ही रह जाते थे। कामवाली बाई बेचारी खाना भी बनाती घर की देखरेख भी करती और गुड्डन का ख्याल भी रखती। जीवन बाबू सिर्फ आह भरते रहते। फिर भी इस बात का संतोष था कि गुड्डन जब भी किलकारी भरते हुए उनके कमरे में आती, उसे देख तो सकते थे। जीवन बाबू का जीवन अब इतना भर ही था।
कठिन समय
सब कुछ ऐसे ही चल रहा था पर एक दिन तो गजब हो गया। शाम के लगभग छः बज रहे थे। ऋषि और संजना ऑफिस से लौटने ही वाले थे। तभी गुड्डन ठुमकते हुए जीवन बाबू के कमरे में आई और बाहर का दरवाजा खुला देखकर लड़खड़ाते कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ने लगी। जीवन बाबू चौंक गए। दरवाजे के बिल्कुल पास ही इलेक्ट्रिक आयरन लगा हुआ था और स्विच भी ऑन था। लोहा बिल्कुल गरम था। यदि गलती से भी गुड्डन इलेक्ट्रिक आयरन को छू लेती तो उसकी कोमल त्वचा जल जाती। बाई भी अंदर कुछ काम कर रही थी। उसका ध्यान गुड्डन पर नहीं था। अब जीवन बाबू करें तो क्या करें? उन्होंने सारी ताकत लगाने की कोशिश की पर तिल भर भी हिल नहीं सके।
साहस
वह पसीने-पसीने हो गए। मुंह से कोई आवाज भी नहीं निकल रही थी। आखिरकार उनकी नजर पैर की ओर पड़े स्टूल पर गई। स्टूल पर पानी का गिलास और जग रखे हुए थे। जब गुड्डन पर नजर पड़ी तो जीवन बाबू ने देखा कि वह आयरन के बिल्कुल पास पहुंच गई है। उन्होंने कोशिश करके अपने बाएं पैर से को जोर से चलाया। पैर जग में लगा और जग नीचे गिर गया। यह देखकर तथा जग के गिरने की आवाज सुनकर गुड्डन भी ठिठक गई और वापस बिस्तर की ओर आने लगी। आवाज सुनकर कामवाली बाई भी दौड़ी -दौड़ी आई। तभी बाहर के दरवाजे से संजना ने भी प्रवेश किया। वह ऑफिस से आ चुकी थी।
संजना और बाई ने एक अजीब दृश्य देखा। उन्होंने देखा कि बाबूजी बेड पर बैठे हुए हैं और दोनों पैरों को हिला रहे हैं। उन्होंने संजना को देखते ही लगभग स्पष्ट स्वर में कहा, “बेटा, आयरन ऑफ करो। ” इतना कह कर धीरे-धीरे दोनों हाथों को बढ़ाकर वे गुड्डन के गालों को सहलाने लगे।
नन्ही गुड्डन ने दादाजी के हाथों में थोड़ी शक्ति तो दे ही दी थी।
‘प’ से शुरू होने वाले कुछ और शब्दों के समानार्थी
पत्ता:
- पत्र
- दल
- पल्लव
- पत्रक
- किसलय
पार्वती:
- उमा
- गौरी
- शैलपुत्री
- अम्बिका
- जगदम्बा
पंख:
- पर
- पक्ष
- डैने
- पाँख
- पखौटा
पहाड़:
- गिरि
- अद्रि
- शैल
- पर्वत
- भूधर
परिवार:
- कुटुंब
- कुल
- वंश
- घराना
पैसा:
- धन
- द्रव्य
- संपदा
- मुद्रा
- राशि
पिता:
- पिता
- बाप
- जनक
- पितृ
- अब्बा
प्रतिज्ञा:
- वचन
- संकल्प
- शपथ
- प्रण
पौधा:
- वनस्पति
- वृक्ष
- लता
- दरख़्त
- तरु
पत्थर:
- शिला
- पाषाण
- कंकड़
- चट्टान
पक्षी:
- चिड़िया
- खग
- विहग
- परिंदा
- नभचर
- पखेरू
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